गुरूकुल उस वैदिक शिक्षणालय का नाम है जिसमें वे बालक व बालिकायें जिनका यथोचित वेदारम्भ संस्कार हो चुका है, शिक्षा और विद्या प्राप्त करें। गुरूकुल की पाठविधि के विषय में सभा ने निश्चय किया कि इसमें विद्यार्थियों को ब्रह्मचर्य-पूर्वक जीवन व्यतीत करना होगा, वेद, संस्कृत-साहित्य तथा आंग्लभाषा का साहित्य पढ़ना आवश्यक होगा और साथ-साथ सब आधुनिक विधाओं को पढ़ने का माध्यम मातृभाषा -"हिन्दी" होगी। मानसिक विकास के साथ शारीरिक तथा आत्मिक विकास को दृष्टि में रखते हुए यह भी निश्चय किया गया कि गुरूकुल में व्यायाम, सन्ध्योपासना आदि करना आवश्यक होगा और सभी को विद्या समाप्ति तक गुरूकुल में ही वास करना होगा।
उक्त निश्चय के अनुसार 4 मार्च 1902 ई0 को महात्मा मुन्शीराम जी ने, जिनका संयास लेने के पश्चात् स्वामी श्रद्धानन्द नाम पड़ा, गुरूकुल काँगड़ी की स्थापना की।