यह युग नारी कल्याण का युग है। वही राष्ट्र प्रगतिशील कहा जा सकता है, जिसकी नारी अति शिक्षित एवं सबल होती है। किसी भी राष्ट्र की सच्चा जागृति तभी सम्भव है जब कि कन्यायें शिक्षित एवं सुसंस्कृत होकर आगे आने वाली पीढ़ियों को सर्वतोन्मुखी उन्नति के पथ पर उत्तरोत्तर अग्रसर कर सकें। एक स्वस्थ और सबल राष्ट्र का निर्माण वस्तुतः शक्ति स्वरूप नारियों के ही हाथों में है। इस दृष्टि से स्त्री शिक्षा ही किसी राष्ट्र की उन्नति का वास्तविक मापदण्ड है। परन्तु इसके लिए यह आवश्यक है कि किसी देश की स्त्री शिक्षा का भव्य भवन उस देश की राष्ट्रीय-परम्परागत संस्कृति की शुद्ध आधार-शिला पर निर्मित हो।
इस तथ्य को विशेष रूप से दृष्टि में रखकर ही इस संस्था की स्थापना की गई और इसकी पाठ विधि एवं शिक्षण-पद्धति को भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति के प्राण पोषक तत्वों पर ही आधारित किया गया।
वर्तमान शिक्षा -पद्धति में खटकने वाली जो त्रुटियां हैं उनका निरीक्षण एवं निराकरण ही इस संस्था का प्रधान लक्ष्य है। अशिक्षा एवं अंधविश्वास से जर्जरित नारी समाज का काया कल्प करने के लिए एक नवीन सांस्कृतिक-चेतना का प्रतिष्ठान रूढ़ियों के ध्वंस पर जागृति के नव सृजन का आह्वान तथा जीवन के शाश्वत नीति सूत्रों का आदर्शीकरण ही कन्या गुरूकुल का महान उद्देश्य है।
इस संस्था की शिक्षण पद्धति का अपना एक मापदण्ड है। जिसमें प्राचीन आदेशों के पुनरूत्थान के साथ-साथ नवीन एवं उपयोगी-उद्भावनाओं और विचार सरणियों का समावेश तथा एक सजग अन्वीक्षण है और जीवन के पोषक तत्वों को हदयंगम करने की प्रबल प्रवृति। इस प्रकार यह कन्या गुरूकुल अपनी इकाई में भारतीय शिक्षण प्रगति की एक ऐतिहासिक सूचना है। इस संस्था में शिक्षा प्राप्त करने के लिये आने वाली छात्राओं के लिए यहीं के छात्रावास में रहना अनिवार्य है। विभिन्न वर्गो और जातियों की कन्यायें भारत के सभी प्रान्तों से उत्तर प्रदेश, राजस्थान, देहली, बिहार, मध्यप्रदेश, पंजाब, उड़ीसा, कश्मीर, आसाम आदि तथा भारत से बाहर के देशों नेपाल, बर्मा, अफ्रीका, कोयत, बगदाद, बसरा, मलाया, सिंगापुर, चीन से भी यहाँ शिक्षा ग्रहण करने आती हैं।